आज बरसों की एक परिकल्पना सच हुई I अपने पिता स्वर्गीय पुना महतो जिसने मेरे हाथों को पकड़ कर चलना सिखाया और बताया की जीवन सिर्फ़ अपने लिए नही दूसरो के लिए भी जीना होता हैं I इसी मुहिम को मन मे लिए बहुत दिनो के अथक प्रयास से आज हम इस मुकाम पर खड़े हैं जहा यह कह सकते हैं की मैने आम जनता की भलाई के लिए जो बीड़ा उठाया था आज उसके बहुत करीब हम पहुच चुके हैं I आज का दिन मेरे जीवन का सबसे सुखद हैं
आप सभी का सहयोग और आशीर्वाद के लिए धन्यवाद